Tuesday, January 14, 2014

बस अपना काम

तुम शायद सोच रहे थे
मैं आसमान छूना चाहता हूँ
या उसे झुकाना चाहता हूँ
तुमने कोशिश नहीं की
शायद ये जानने की
मेरे ये झुके हुए हाथ
बहुत थक गए थे
काम के बोझ से ये
एक ही अवस्था में झुके
बदलाव माँग रहे थे
मैं इन्हें उठाना चाहता हूँ
वो भी बस अपने लिए
फिर भी आश्वस्त हूँ
तुम्हें उम्मीद है मुझसे
कि मैं आसमान छूना
और झुकाना जानता हूँ
मैं तो ज़मीन पर खड़ा
बस अपना काम जानता हूँ

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