नींद में भी सुनाई दी थी
आवाज़ कोई पहचानी सी
फिर खुली थी नींद मेरी
आँखें अलसाई सी थीं
कोई धीमी आहट सी थी
मैंने देखा था चुपके से
मेरे दरवाज़े पर शायद
चाँदनी दस्तक दे रही थी
दरवाज़ा खुलते ही बस
हर ओर बिखर गई थी
नींद से हक़ीक़त तक
सब रोशन कर गई थी
फिर भी न जाने क्यों
कई सवाल नए-पुराने
मेरे जेहन में ले आई थीं
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