Saturday, January 18, 2014

तुम्हीं कहो

अब तुम्हीं कहो
धूप कहाँ मिलेगी
इस घनी बारिश में
सूरज को पकड़ लाता
मेरे वश में होता अगर
लेकिन क्या करूँ मैं
मेरी तो बस सीमायें हैं
नन्हीं चींटी की तरह
बेवज़ह कोशिश करना
असंभव को उठा लेने की
कोई रास्ता नहीं है यहाँ
धैर्य बना रखने के सिवा
शायद कल धूप निकले
मेरा भी बस अनुमान है
बिलकुल तुम्हारी तरह
अब तुम्हीं कहो

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