Thursday, March 19, 2015

दुस्साहस

कर्तव्यनिष्ठा, दया
सहानुभूति और सदाचार
उसे सदा प्रिय थे
उसमें शायद
आत्मविश्वास कम था
बचपन से ही
बड़े होकर
इसका फायदा उठाया
शायद सब ने
उसके परिजन रहे
स्वयं अव्यवस्थित
उनकी चिंता में
अव्यवस्थित रहा
वह भी शायद
उसका ज्ञान असीमित था
पर वो सीमित कहता था
बेमिसाल थी
उसकी विनम्रता
दुस्साहस समझा गया
उसकी ईमानदारी को
फिर भी कमी नहीं रही
उसके प्रशंसकों की
उसका दर्द
सब जानते थे
उसकी व्यथा-कथा
उसे नाखुश रखे रही
और आज, अचानक
असमय जाने की खबर
कुछ को छोड़ सभी को
व्यथित कर गई
उसकीआत्मा हँसती होगी
उपेक्षा पर
साथ न पाकर
जीते जी साथियों का!

1 comment:

Unknown said...
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