Wednesday, December 9, 2015

समझ लेना

हरेक को है हक़ अपनी बात रखने का
हर बात पर अपनी बात न समझ लेना
रौशनी की वज़ह और भी हो सकती है
हर रात दीवाली की रात न समझ लेना
हुजूम लोगों यहाँ का बनता ही रहता है
जुलूस को अपनी बारात न समझ लेना
तुमको भी मिला हुआ है बहुत कुछ यहाँ
सिर्फ औरों की ही इफ़रात न समझ लेना
अँधेरे तो कभी-कभी दिन में भी दिखते हैं
कहीं दिन को आधी रात न समझ लेना
जो तुम्हारा है उस पर औरों का भी हक़ है
सब कुछ अपनी सौगात न समझ लेना
अमल करोगे तो सुधर जायेगी ज़िन्दगी
कहीं कोरे ही ये ज़ज़्बात न समझ लेना

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