Friday, March 11, 2016

पानी-पानी

पानी की हैं अपनी कई पहचान
कभी ये जग पानी-पानी हो गया
लोगों की हैं अपनी-अपनी पहचान
कभी मैं शर्म से पानी-पानी हो गया
कौन कहता है शीतल होता है पानी
कभी ये शहर पानी से जल गया
कई बार पानी की बूँद को हूँ तरसा
कभी हर रास्ता पानी से भर गया
कभी हुआ करता था निर्मल पानी
अब यहाँ सब पानी-पानी हो गया

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