मशरूफ हैं सब लोग
तलाशते हैं मायने
नए-नए कितने
मुल्क़ के यहाँ
अपनी- अपनी तरह से
अपनी- अपनी वज़ह से
ऐसी बात नहीं
कि आज किसी का
और कल किसी और का
हर किसी का है मुल्क़
अपनी- अपनी तरह से
शुमार होंगे सब लोग
होंगे भागीदार सब
तरक़्क़ी के मुल्क़ की
सबसे पहले मुल्क़
फिर कोई होता है और
इसी को कहते हैं
सब का अपना मुल्क़
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