Monday, August 12, 2019

सिमटती दुनियां

संसार बदल गया
हम से मैं हो गया
घर अब मकान हैं
सुबह देर से होती है
दिन भर समय नहीं
सब व्यस्त हैं
अपनी अपनी तरह
रातें खामोश नहीं हैं
हर तरह का शोर
हर तरफ है
नियत समय नहीं
नींद का अब कोई
मेल-जोल केवल
मोबाइल व इंटरनैट सै
रिश्तों के नए स्वरूप
सब औपचारिक हैं
बात का समय लेना है
मशीनी युग है
आदमी गौण है
आदमियत लुप्तप्राय है
एकतरफा लगाव है
कहीं वो भी नहीं
सब कहते हैं
बड़ी तरक्क़ी हो गई
लेकिन यथार्थ में
दुनियां सिमट सी गई!






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