लोग जाने क्यों जल गए
जो मुरव्वत थे हम से
बेमुरव्वत बहुत हो गए
ये कोई राज़ तो था नहीं
राज़ की खोज करते गए
हमसफर हमारे कितने
बेपरवाह हमसे होते गए
कितने खैरख्वाह हमारे
कुछ बेरुखी से हँस दिए
अपनों के शिक़ायती सुर
मौसिक़ी में नई ढल गए
बस दोस्ती की खातिर ही
हम हर सितम सहते गए
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