करतब हुक्मरानों के
लोग भी सोचते हैं
अज़ब खेल है इधर
जम्हूरियत का भी
किसी की परवाह नहीं
बस फ़ैसले करती है
ज़मात चुनिंदा लोगों की
तारीफ़ करते नहीं थकती
ज़ुबान खुद हुक्मरानों की
आदत हो गई है अब
लोगों को इस खेल की
वो भी बुन रहे हैं
अपने ताने-बाने सब
बेतहाशा भागता है
हर कोई यहाँ अब
बगैर सोचे या किये
परवाह किसी और की
मुल्क़ का क्या है
सब का है कहते हैं
इसीलिए किसी का नहीं
फायदे सब चाहते हैं
क़ायदे कोई नहीं मानता
औरों से रखते हैं उम्मीद
चिराग़ थाम उजाले की
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