बड़ा सम्मोहक था
यूँ अस्कस्मात्
मिलना तुमसे मेरा
लेकिन फिर भी
शालीनता के दायरे
आभास कराते रहे
मुझे प्रतिपल
मन की बात
मन ही में रखने की
ठान ली थी मैंने
परन्तु आज भी
भावनात्मक न सही
मधुर स्मृति के रूप में
मन-मस्तिष्क को
सुखद लगता रहा है
तुमसे वो मिलन
तुम्हारी बात
तुम्हें मालूम होगी
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