रस्म-ओ-रिवाज़ की
मज़हब और इबादत की
सूबे और ज़ुबान की
मुल्कों और मिल्क़ियत की
किसी भी फ़िरक़ापरस्ती की
आदमी और ख़वातीन की
बस इंसान बन कर देख लो
ये ज़मीन नहीं है हैवान की
वरना सब ख़त्म हो जायेगा
बातें करो इंसानियत की
जीने की वजह तलाश करो
ज़रूरत नहीं एक राह की
सिर्फ तरीक़े तो अलग़ हैं
बाक़ी सब तो एक सा है
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