Friday, September 26, 2014

चलता रहा हूँ मैं

चलता रहा हूँ मैं
रुके हुए से वक़्त
ठहरी सी ज़िन्दगी
सब के साथ
अपलक देखते
लोगों की दृष्टि
और उनके
कौतूहल भरे
मिज़ाज़ के साथ
वक़्त के साथ
जमी बर्फ से हुए
दिमाग़ लोगों के
उनकी जड़ता के साथ
अपनी ही दृष्टि में
किंकर्तव्यविमूढ़
मेरे पूर्वाग्रहों के साथ
कभी रुकना चाहा
फिर भी रुक नहीं पाया
चलता रहा हूँ मैं

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