Tuesday, June 16, 2015

वक़्त का तकाज़ा

मेरे अरमाँ मेरे सपने न जाने कहाँ खो गए
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
तो क्या हुआ, मैं नए सपने संजो लूंगा
मेरा वादा है, कहानी नई मैं लिख दूँगा
हसरतों की बात है, कहीं तो कुछ खास है
वक़्त बाकी है,आस अब भी पूरी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त लम्हा है, मुड़ मुड़ के फिर देखूँगा
मेरा दावा है तुमसे, ख़्वाब फिर मैं देखूँगा
रुकना न मैंने सीखा, ये तुम भी देख लेना
जो रुक गया यहाँ, बात उसकी रह गई
कहानी मेरी, बनते बनते, अधूरी रह गई
वक़्त का तकाज़ा है, कुछ नहीं थमता है
ये ज़िन्दगी और क्या, चलने का बस नाम है
कर गुजरूँगा मैं भी कुछ फिर कहेंगे सब ही
कामयाबी यूँ मिली मजबूरियाँ पीछे रह गईं
कहानी मेरी, बनते बनते, पूरी बन गई
मेरे अरमाँ मेरे सपने हाँ बदल गए हैं कुछ
कहानी मेरी, फिर भी बनते पूरी बन गई

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