मित्रवत अवश्य हूँ
हैरत नहीं होती मुझे
यह जानकर भी कभी
मैं विश्वासपात्र नहीं
शायद तुम्हारे निकट
तुम्हारे नज़रिये से
तुम, तुम्हारे विवेक पर
मुझे भी विश्वास नहीं
कमियां हैं तुम में कई
हावी हो जाती हैं वो
तुम्हारे विवेक पर
मेरे नज़रिये से
लेकिन आभास होगा
किसी दिन अवश्य
तुमको दृष्टिभ्रम का
जब देखोगे तुम कभी
खुले नज़रिये से
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