Wednesday, June 1, 2016

हौसलाअफ़्ज़ाई

एक छोटी जगह से हूँ मैं
जहाँ हर चीज में संघर्ष है
जीवन-यापन, पढ़ना-पढ़ाना
सब सरल सब संघर्ष था
सरल इसलिए भी होता है
क्यों कि विकल्प नहीं होते थे
माता-पिता सब संघर्ष से
पढाते हैं बच्च्चों को फिर भी
मैं थोड़ी बेहतर स्थिति में था
पिता क्षेत्र विकास अधिकारी थे
लेकिन छोटी जगह तैनाती थी
आठवीं में था तो रिटायर हो गए
गाँव में बस गए फिर हम अचानक
कस्बे में स्कूल आठवीं तक ही था
जनता हाई स्कूल खोला गया
टीचर मुश्किल से मिलते थे
हुए तो कुछ भी पढा देते थे
ट्यूशन तब रिवाज़ में नहीं थे
हाई स्कूल के बाद घर से बाहर
कुछ लोग मिलकर डेरा था
पढाई के साथ सब काम खुद
फिर भी खेल-मनोरंजन जारी थे
12वीं के बाद जिला मुख्यालय
डिग्री कॉलेज सरकारी था
पोस्ट ग्रेजुएट के बाद जाना
अब नौकरी भी करनी पड़ेगी
पिता बोले अभी तो बड़े छोटे हो
एक और एम ए क्यों नहीं करते
कर लिया अबके गोल्ड मैडल था
रिसर्च का मन बन जे एन यू आये
कई बारीकियाँ समझने लगे
प्रोफ़ेसर कहते थे छोटी जगह के हो
हमारे स्टूडेंट्स सा कम जानते हो
एक बार में सारे कोर्स कर दिखाये
प्रोफ़ेसर ने अपने शब्द वापस ले लिए
अंग्रेजी बोलने का अभ्यास किया
अब कोई तंज बाक़ी नहीं रहे थे
सरकारी नौकरी में में कुछ यूँ ही था
कोई डी यू कोई स्टीफन्स के थे
कोई पब्लिक स्कूलों के नाम लेते थे
जे एन यू का नाम बड़ा काम आया
हमसे स्कूलों के नाम कोई न पूछ पाया
शायद हमने साबित कर दिखाया
मेहनत और लगन को बड़ा बताया
अंतिम दिन तक ९ बजे दफ्तर थे
खुद अनुशासन खुद पर लागू था
कोताही कभी नहीं की काम में
जितना अपेक्षित था उससे ज़्यादा ही
चपरासी या अफसर व्यव्हार एक सा
आदमी आदमी में फ़र्क़ कैसे करते
वरना अपनी ही नज़र में गिर जाते
दोस्तों की कभी कमी नहीं रही
दुश्मनी तो हमने कभी की ही नहीं
छोटो-बड़ी बातें साथ साथ भुला दीं
किसी को मदद में कमी नहीं की
आज भी नया सीखने का मोहताज हूँ
रिटायर हूँ सन्यास नहीं लिया हूँ
अभी बहुत करने का मन बाक़ी है
आपकी हौसलाअफ़्ज़ाई का प्रार्थी हूँ
आते जाते हमें याद ज़रूर रखना
जहाँ से शुरू किया फितरतन वहीँ हूँ
ज़िन्दगी का आप सब का शुक्रगुज़ार हूँ

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