Wednesday, June 6, 2012

कुछ और

कई बार मन चाहता कुछ और है लेकिन फिर करता कुछ और है अक्सर कहना चाहता कुछ और है पर हर बार कहता कुछ और है मन मानता नहीं लाख मना लो मन नहीं पर करता कोई और है लेकिन मन भटकाता कई ओर है पर जीवन अटकता कहीं और है मन कुछ कहे होता कुछ और है जो नसीब में लिखा कुछ और है

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