Saturday, June 30, 2012
ममत्व
मेरा मेरे ममत्व से ऐसा परिचय
कुछ सादा और कुछ अटपटा सा
जो भी महसूस हो रहा था मुझे
उसमें सत्य का एक अंश मात्र था
मुझे जब जब भी लगा था कि
मैं कुछ स्वयं के लिए करता था
वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं था
मैं तो एक मरीचिका में जीता था
जन्म, ज़रा, मृत्यु के बंधन में था
इन पर मेरा जोर कभी नहीं था
फिर अब ये कैसा ममत्व था?
मैं भी हम सब की भाँति ही एक
समय की शतरंज का मोहरा था
बादशाहों और वजीरों सा ही मैं भी
किसी और के निशाने पर भी था
मेरी चाल भी जीत के लिए ही थी
शाह और मात भी छलावा ही था
अब मुझे अहसास होने लगा था मैं
निरंतर बन्धनों बांधवों से घिरा था
यहाँ से निकल पाना भी असंभव था
और यहाँ कुछ भी मेरे लिए नहीं था
मुझमें कोई ममत्व कहीं भी नहीं था
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