Friday, June 8, 2012

रौशनी दिखाओ

अब सुबह कहाँ है
शाम कब हुई
कोई तो मुझको यह बतलाओ
स्वप्न बिना ही नींद हैं आते
अब जागे से ही इन्हें जगाओ
ये चाँदनी अब फीकी सी क्यों है
इसे कोई उजले वस्त्र पहनाओ
अब ये तारे सिर्फ चमकते हैं
तारों को टिमटिमाना सिखाओ
अब वक़्त भी आ गया है ऐसा
तुम सूरज को रौशनी दिखाओ
अब कर भी लो जो वश में है
या फिर सारी उम्र पछताओ

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