Saturday, June 30, 2012

अपलक

बस तुम्हारी पलकों को ही अपलक सा देख रहा था मैं तुम पलकों को झपकते ही उन्हें खोल देखना चाहती थी शायद तुम मेरे दृष्टि का ही परीक्षण करना चाह रही थी किन्तु खुलती पलकों को फिर झपक भी लेती थीं तुम प्रायः शायद कुछ प्रश्नों के बोझ से या फिर किसी अपराध भाव से तुम्हारी आँखें कतरा रही थीं मेरा प्रत्यक्ष सामना करने से मैं फिर भी देखे जा रहा था अपलक तुमारी पलकों को इनमें बसे जीवन की लय को प्रश्नहीन एवं गवेषणाहीन अपनी ही एक किसी धुन में अपने ही अनजाने सुरूर में मैं निरंतर देखता जा रहा था अपलक तुमारी पलकों को

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