अक़सर जी करता है हर हाल में मुस्कुरा दूँ
कोई फ़िक़रे भी कसे तो मैं बस मुस्कुरा दूँ
कुछ अपने इस अंदाज़ की तर्ज़ पर ही सही
कुछ बेवक़ूफ़ों की यूँ अक़ल पर मुस्कुरा दूँ
कभी ज़माने के ज़ुल्म-ओ-सितम पर तो
कभी ख़ुद की ही बेवक़ूफ़ियों पर मुस्कुरा दूँ
कभी उन मोहब्बत भरी निग़ाहों के लिए तो
कभी बिसरी मोहब्बत दास्ताँ पर मुस्कुरा दूँ
उस शोख़ शरारत भरे लम्हों को याद कर के
उन्हीं शोखियों पर ही कभी मैं यूँ मुस्कुरा दूँ
ज़िन्दगी के बचे खुचे अरमान गिन कर मैं
ज़िन्दगी की ही हसीन शरारत पर मुस्कुरा दूँ
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