बड़ी तरक्की कर ली
मुल्क़ ने अपने!
लेकिन
दिखाई नहीं दिया
कोई बदलाव
कम से कम
मेरे आस पास!
तुम्हीं देख लो
मैं तो खुले पैर
बर्फ में भी
लकड़ियाँ लाती हूँ
तब चूल्हा जलता है
घर चलता है
जैसे तैसे !
जान है जब तक
यूँ ही गुजर होगी
फिर एक रोज़
मर-खप जाऊँगी
तुम पढ़ते रहना
क़सीदे तरक्की के
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