बाहर भी अंदर भी
पर अकेले नहीं हैं हम
क़ुसूर किसका है
संज़ीदगी से देखो तो
क़ुसूरवार हैं हम
अपनी ही सोचते हैं
खुद को ही मानते हैं
ऐसे हो गए हैं हम
हरेक से खफा हैं
खुद को माफ़ करते हैं
सोचते मैं कहते हैं हम
चन्द लोग हैं यहाँ
जिनसे क़ायम है सब
ये जानते हैं हम
ख़ुद पर जब गुज़रती है
तभी एहसास होता है
कि ज़िंदा हैं हम
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