Thursday, August 25, 2016

प्रेम सुधा

सर्वस्व भस्म हो सकता है तो
बचा रहा क्या दिखलाना होगा
सपने तुमने भी हमने भी देखे
जीवन का सच बतलाना होगा
जीना तुमने भी हमने भी चाहा
कुछ ज्ञान मार्ग अपनाना होगा
कितने थे मरे हैं कितने घायल
ख़बर को ऐसी भुलाना ही होगा
क्या यही प्रगति का मानक है
राष्ट्र है क्या ज़रा समझना होगा
कितने मानुष शव में हैं बदले
हासिल क्या खुद समझाना होगा
मरघट में अब है जगह नहीं
बस दिल में तुम्हें बसाना होगा
मार्ग शांति का चुन लो अब तुम
आतंकवाद झुठलाना ही होगा
शांति, ज्ञान , मानव स्वभाव है
अब प्रेम सुधा बरसाना होगा


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