आज़ादी की राहों में चलते मतवाले
मुल्क़ की ख़ातिर फ़ना होते अब भी
जांबाजी से सरहदों को बचाने वाले
खुदगर्ज़ी की हदों में हैं बाक़ी लोग
ऐशो-आराम का हक़ समझने वाले
अब हर कोई है आज़ाद हर तरफ़
मुल्क़ के नाम पर खुद बिकने वाले
तारीख़ से मिसाल देते हैं भाषण में
मुँह बनाकर पन्ने ही पलट देने वाले
शायद किसी को नहीं होता एहसास
कैसे थे मुल्क़ पर क़ुर्बान होने वाले
No comments:
Post a Comment