Saturday, September 17, 2016

खैरख्वाह से

वक़्त के साथ आईने देखे मैंने
गुज़रे वक़्त से लगे तुम मुझ को
कैसा आईना दिखाते हो तुम
मैं क्या हूँ एहसास है मुझ को
मुझे हकीकत में रहने दो तुम
गया वक़्त न दिखाओ मुझ को
कहते हैं आइने झूठे नहीं होते
तुम लेकिन और लगे मुझ को
लेकिन इतना मैं ज़रूर कहूँगी
खैरख्वाह से लगते हो मुझ को

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