उम्मीदें मेरी बंधी हुई हैं
किसी की बंद मुट्ठी में
क्या खूब सहारा है हमें
हसरतों में उम्मीद का
हमारा वज़ूद कायम है
दोनों की ही शिरक़त में
दोनों ही दिलासा देती हैं
ढूंढें जिस किसी हाल में
यही मेरा आसरा भी है
तसल्ली भी मुझे इसी में
इसीलिए खुश हूँ मैं
मुट्ठी के बंद रहने में
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