Wednesday, July 20, 2011

विवेचना

तुम्हारे उद्गारों की कड़वाहट
मुझे मायूस सा कर देती है
फिर भी मुझे इसमें तुम्हारा
मात्र व्यक्तित्व दोष दीखता है
उलाहने देकर प्रतिक्रिया में
तुम्हें फिर विवेचना की आदत है
मुझे विवेचना से क्या काम है
मंतव्य की समझ ही पर्याप्त है
तुम्हें अधिकार सोच का है
मेरा प्रयास बस समझ से है

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