Saturday, July 23, 2011

ऐसे आ जाना

तुम अचानक फिर आना
बिना कोई भी खबर किए
वही मदमस्त हँसी के खूब
ठहाकों से भरे अंदाज़ लिए
तुम्हारी खनकती चूड़ियों की
चिर-परिचित आवाज़ लिए
वो पायल छमछमाती हुई
वही मधुर सा संगीत लिए
मेरी हसरतों में भी कसर
आज न रह जाए कोई बाकी
तुम बस ऐसे छा जाना मेरी
नज़रों में बस जाने के लिए
तुम हर रंग में चली आना
सब रस मेरे घर-द्वार लिए

2 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

एक आशा एक चाहत ... सुन्दर रचना, ऐसे आ जाना..सादर

Udaya said...

many thnkas Nutan:)