हर बार सोचा एक बार मौका देंगे
बार बार हमारी नज़र में गिरे तुम
हम चुप रहे बढ़ी हिम्मत तुम्हारी
फिर भी हमीं को कोस रहे हो तुम
तुम्हें मुगालता अगर कुछ भी हो
अपनी ही साँस से चल रहे हो तुम
तुम जितने भी चाहे ठोंक लो ताल
मेरी नज़र में ख़त्म हो रहे हो तुम
देख ली ज़माने ने कूबत तुम्हारी
अब कभी यूँ बहला न सकोगे तुम
किसी न बिकने वाली चीज का
पुराना इश्तहार बन गए हो तुम
2 comments:
nice very touching ....thanks
khubsurat
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