जीवन में बिस्मरणीय होते हैं पल
जब अकारण ही बिगड़ जाती है बात
अपने अंतःकरण में झाँकने पर भी
कुछ समझ नहीं पाया मैं कुछ बात
न जाने क्यों सहानुभूति हुई थी मुझे
अपने ही मन में और अपने ही साथ
सनसनाती सर्द हवाओं के थपेड़े भी
मुझे सामान्य से लगे थे बीती रात
विचलित सा कर गए थे दोनों मुझे
उनका आगोश भी और उनका साथ
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