Tuesday, October 9, 2012

ऐसा कोई

हर दर पे ढूंढा दोस्त पर ऐसा कोई मिलता नहीं
न कोई क़द्रदान मिला और है कोई आशना नहीं
हम यहाँ कोई उम्मीद से उनको देखा किए नहीं
फिर भी ये दिल ही तो है थामा मगर थमता नहीं
ये हसरतें मोम की तरह धीरे धीरे पिघलती रहीं
फिर भी किसी और का जहाँ रोशन करती रहीं
कोई जाँबाज़ किसी और की दास्ताँ सुनता नहीं
अपनी ही खातिर कभी कोई यूँ ही जाँ देता नहीं
है कोई इधर अपना नहीं पर ग़ैर भी तो कोई नहीं
हम से ही अब हैं हमारी हसरतें शिक़वा कर रहीं

1 comment:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.

हर दर पे ढूंढा दोस्त पर ऐसा कोई मिलता नहीं
न कोई क़द्रदान मिला और है कोई आशना नहीं

ऐसी बात तो नहीं …
बहुत हैं हुज़ूर ! जिन खोजा तिन पाइया…

अच्छी नज़्म लिखी है आदरणीय उदय शंकर पंत जी !
आपके ब्लॉग पर पहली बार पहुंचा हूं शायद …
आप तो हमसे पुराने ब्लॉगर हैं
:)
अच्छा लगा ।


चलती रहे लेखनी …
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार