हर अच्छी बुरी बात में ही याद आती थी माँ
कभी डांटती भी पर ज्यादा पुचकारती थी माँ
दुलार और कौन देता है यहाँ माँ का जैसा कभी
प्यार और वात्सल्य बाक़ी तो बस माँ में अभी
लगता है ये बड़े होने की ऐसी क्या थी ज़ल्दी
माँ का घर क्या छूटा मानो ज़िन्दगी चल दी
जो सुकून था माँ के आँचल की छाँव में मिला
वो जीवन भर याद रहा पर बिछुड़ता ही चला
बड़ी नायाब थी वो ज़िन्दगी माँ के साये में पली
क़शमक़श में ज़िन्दगी की माँ भी है भूल चली
No comments:
Post a Comment