इतिहास गवाह है
कोई हल नहीं निकलते
बंदूक़ की गोली से
फिर भी चन्द लोग इसे
मानकर भी नहीं मानते
ख़ुद के साथ साथ
मासूम निर्दोष जन को
इस आग में झोंक देते
अपनी ज़िद के चलते
लेकिन हर आतंकवाद
किसी वज़ह में पलते
कहीं न कहीं ये सदैव
व्यवस्थाजन्य कारणों से
शोषण व अभाव में पलते
उभय पक्ष की ग़लतियों का
खामियाज़ा मासूम भुगतते
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