वतन से अब खुदी का टकराव है
कुछ ऐसा ही महसूस होने लगा है
पहले खुद से वतन पहले आता था
पर वतन अब महज़ एक पता है
यहाँ खुद से बेहतर कुछ भी नहीं है
लोगों को शायद ऐसा लगने लगा है
खुद से क़ौम, क़ौम से वतन पहले
ये सब दकियानूसी लगने लगा है
हर कोई रातों रात अमीरी ढूंढता है
मुल्क़ बेच भी खुद दौलत चाहता है
लोगों की सोच में खोट आ गया है
ऐसा ही मुझे महसूस होने लगा है
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