Wednesday, May 22, 2013

आहट

बड़ी ही कोफ़्त होती थी
आस पास की आहटों से
प्रत्यक्ष व नेपथ्य से आती
आवाज़ें अनचाही सी थीं
किन्तु अब मानो शून्य है
कितनी गहन ख़ामोशी है
खामोशियों के स्वरों को
कोलाहल की तलाश है
मौन के ये पल अब यहाँ
कुछ डरावने से लगते हैं
अब किसी भी आहट का
मुझको इधर इन्तज़ार है

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