Sunday, June 9, 2013

समय का फेर

इसी दरख़्त के साये में
पलते थे जाने कितने सपने
हर पल कोई एक नया राही
थका हारा पाता था आराम यहाँ
बिना कोई भी क़ीमत चुकाये
वही दरख़्त है वही जगह है
लेकिन कितना कुछ बदल गया
इसके आस पास यहाँ सब
कोई इस जगह का मालिक़ है
यहाँ अब सपने बेचे जाते हैं
ख़रीददार भी ख़ूब आते हैं
नाम, तारीफ़ मालिक की है
दरख़्त चुपचाप खड़ा है
अपने आप को बिकते देख
समय का फेर देखता है

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