ये क्या कहते हो
मैंने कहा था तुमसे
क्राँति बस भ्रान्ति है
तुम नहीं मानोगे
फिर भी कहता हूँ
बदल दो अन्दाज़
मुझे डर लगता है
कल बदल जाओगे
शायद तुम भी कहीं
भरोसा तोड़ोगे मेरा
मैं मान चुका हूँ
यथास्थिति की बात
भ्रांति में ही जी लूँगा
ये भी सोचता हूँ
कोशिश करोगे तुम
इसलिए मौक़ा दूँगा
मेरे ज़ज्बात बदलो
आशावान भी रहूँगा
No comments:
Post a Comment