Thursday, August 21, 2014

अविश्वास

न जाने कैसे यहाँ
कभी-कभी क्या
अक्सर आ जाते
चंद ख़यालात
बस अनायास
और कभी
कुछ नहीं सूझता
हज़ार सोचने पर भी
और सप्रयास
लेकिन शायद
दोनों ही हालत में
बवंडर सा मचता
अंतर्मन में
बढ़ा देता है
स्वयं पर मेरा
अविश्वास


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