Saturday, August 23, 2014

उत्साह

मेरे ही मन में तुम बस कर
मुझको उदास कर जाते हो
तुम क्यों हो इतने चंचल
पल में दूर, पास आ जाते हो
भाव समझता था ये मेरे हैं
पर तुम इन पर छा जाते हो
मेरे गीतों के बोलों में भी
तुम यहाँ-वहाँ दिख जाते हो
मेरी यूँ सीमारेखा तय कर
तुम अपना हास बढ़ाते हो
विरह,राग,क्रोध के पल बन
मेरे तन-मन में छा जाते हो
फिर भी तुमको मालूम नहीं
मन आनंदित कर जाते हो
उल्लास भरे पल याद दिला
अब भी उत्साह बढ़ा जाते हो

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