Saturday, November 29, 2014

प्यार फ़लसफ़ा नहीं

कभी-कभी कड़वे घूँट दवा मान पी लेते हैं
प्यार की चाशनी में सब मीठा कर लेते हैं
मर्ज़ को खुद दवा का स्वरुप जान लेते हैं
मर्ज़ का इलाज़ कुछ इस तरह कर लेते हैं
प्यार की तकरार का आभास लिए जीते हैं
बेचैनियों में प्यार की यूँ चैन लिए रहते हैं
मीठे से दर्द का सा एहसास लिए फिरते हैं
हम प्यार से लबरेज़ अन्दाज़ लिए रहते हैं
ज़िन्दगी की अँगड़ाइयों को पहचान लेते हैं
प्यार फ़लसफ़ा नहीं हक़ीक़त मान लेते हैं

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