लेकर उधार की रौशनी
जग भर इतराता चाँद
दूर से सही अच्छा लगा
अपनी रौशनी बिखेरता
एक तारा टिमटिमाटा
चाँद अक्सर बीच आकर
सूरज और पृथ्वी दोनों से
अपना हित साधन करता
सूरज भी कुछ कम नहीं
वह भी रौशनी के ऐवज़ में
कितने चक्कर लगवा देता
अपनी सामर्थ्य मुताबिक
जितना हो दे सकने वाला
मुझे तारा ही भला लगता
No comments:
Post a Comment