Thursday, September 23, 2010

तलाश

इस शहर की सर्द शाम की
सुनसान राहों में चलते यहाँ
हल्की सी चलती सर्द हवा भी
बड़ा ही शोर सा मचाती है
हर पदचाप दिलाती है मानो
किसी के आने का एहसास
पीछे मुड़कर देखता हूँ तो
वही अनजान चेहरे नजर आते
वही गलियों के सन्नाटे हैं
फिर क़दम बढ़ते जाते हैं
अपनी मंजिल की तलाश में

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