Monday, September 27, 2010

अपराध भाव

वो हँसते हँसते जहाँ छोड़ गए
मेरे इस महफूज़ जहाँ की खातिर
उनके भी कुछ सपने रहे होंगे
उनके भी अपने ज़रूर रहे होंगे
सितमगर के सितम को मिटाने
मगर वो बस मशरूफ रहे होंगे
मेरे हिस्से की भी परेशानियाँ
वो खुद ही खुद झेल गए होंगे
मैं इस पर भी खुश नहीं हूँ
उनके तौर तरीकों पर भी मैं
कभी कभी तप्सरा कर देता हूँ
अपने रास्ते,मंजिल की ओर
फिर किनारा भी कर लेता हूँ
कितना भी छुपा लो, तुम भी
संकेत मात्र के ही प्रतीक हो
तुम्हारे संजीदा अल्फाजों में
अपराध भाव ढूंढ लेता हूँ

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