वो हँसते हँसते जहाँ छोड़ गए
मेरे इस महफूज़ जहाँ की खातिर
उनके भी कुछ सपने रहे होंगे
उनके भी अपने ज़रूर रहे होंगे
सितमगर के सितम को मिटाने
मगर वो बस मशरूफ रहे होंगे
मेरे हिस्से की भी परेशानियाँ
वो खुद ही खुद झेल गए होंगे
मैं इस पर भी खुश नहीं हूँ
उनके तौर तरीकों पर भी मैं
कभी कभी तप्सरा कर देता हूँ
अपने रास्ते,मंजिल की ओर
फिर किनारा भी कर लेता हूँ
कितना भी छुपा लो, तुम भी
संकेत मात्र के ही प्रतीक हो
तुम्हारे संजीदा अल्फाजों में
अपराध भाव ढूंढ लेता हूँ
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