Friday, September 24, 2010

दर्द की बहार

दर्द की सिरहन भरी बयार ने दी
दस्तक जब मेरे दरवाज़े पर थी
मैं सहम सी गई थी उस रोज़
मुझे हताशा हुई थी अचानक
ये मेरे द्वार कैसे चली आई थी
मेरे बिन चाहे बिना कारण ही
फिर मैंने किया सामना उसका
विकल्प था भी नहीं मेरे पास
अपने तरीके से स्वागत के सिवा
दरवाज़े को खोल दिया था मैंने
अब वो मेरे ही घर पर यहाँ
दर्द की बहार बनके बसती है

1 comment:

geekays said...

kya baat hai pant saahb, bilkul thik likha aapne, agar dard ko bhi apna lo to wo bhi bahaar banjaati hai.....aadmi chaahe to taqdeer badal sakta hai.