दर्द की सिरहन भरी बयार ने दी
दस्तक जब मेरे दरवाज़े पर थी
मैं सहम सी गई थी उस रोज़
मुझे हताशा हुई थी अचानक
ये मेरे द्वार कैसे चली आई थी
मेरे बिन चाहे बिना कारण ही
फिर मैंने किया सामना उसका
विकल्प था भी नहीं मेरे पास
अपने तरीके से स्वागत के सिवा
दरवाज़े को खोल दिया था मैंने
अब वो मेरे ही घर पर यहाँ
दर्द की बहार बनके बसती है
1 comment:
kya baat hai pant saahb, bilkul thik likha aapne, agar dard ko bhi apna lo to wo bhi bahaar banjaati hai.....aadmi chaahe to taqdeer badal sakta hai.
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