कांपते हाथों से मैंने भेजा है
अपनी मोहब्बत का ये पैगाम
सिसकती सी सांझ में बसा है
इस सर्द मौसम का ऐलान
दो गर्म होंठों से तुम अपने
इसे बस ज़रा गुनगुना देना
छूकर चला आयेगा वापस
वो मेरे पास ऐ मोहतरम
रुसवा न करना तुम मुझे
आज भी मुझे आने वाले
किसी वसंत का इंतज़ार है
1 comment:
बेजोड़ प्रस्तुति /
शानदार अभिव्यक्ति
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