Monday, January 17, 2011

अजीबो गरीब

बड़े ही अजीबो गरीब होते हैं लोग
कहते कुछ हैं करते और ही हैं लोग
हम सब भी शामिल हैं इस भीड़ में
हमारे बाद ही नज़र आते हैं लोग
किसी के संकट में नज़र भर फेर
अपनी अपनी राह चल देते लोग
सभी की खुशियों में तो शरीक होते
पर ईर्ष्या सी भी रखते हैं कई लोग
परिवार, देश, समाज के उत्तरदायित्व
अक्सर ही नज़रंदाज़ करते हैं लोग
जीवन भर दौड़ भाग कर भी अंततः
उसी अनंत में समा जाते सब लोग

2 comments:

seasofjnu said...

rightly said sir... as already acknowledged by kaifi azmi saab, यह जो ज़िन्दगी की किताब है , यह किताब भी क्या किताब है ,
कहीं एक हसीं सा ख़वाब है , कहीं जान लेवा अज़ाब है II

asha said...

zindagi seedhi - saadi kab hui !
bheed mai samvedna kab hui !
jalan, daah ,ershya, zindagi ke
masale hai, kaise bach sakte hai aap, hum ye, wo...