Monday, January 31, 2011

पागलपन

तब तो रोज़ इंतज़ार रहता था
बस एक झलक पा जाने का
कितने दिन और कितने महीने
न मालूम कितना समय गंवाया
बस उसी पागलपन के साथ
उसकी वो छुपी मुस्कराहट पर
सामने आते ही होश फाख्ता
अगले दिन फिर वही जुनून
दोस्तों के साथ भी मिलकर
ठहाके लगाने की वो वारदातें
अब वाकई पागलपन लगती हैं
फिर जब उसे कुछ मालूम न था
अब उन यादों के समंदर में
अब बस अक्सर अंगड़ाई लेते हैं
पुराने दोस्त मिलकर फिर कभी
जोरों से ठहाके लगा देते हैं!

1 comment:

kahaley said...

I liked PAGALPAN indeed it is nice to live with sweetness of memories.
By the way it is kahaley---sdkahaley1@gmail.com
HOPE TO GET TO READ MORE FROM U SOON