शमशीर तो है मेरे हाथों में
अब भी संभाली हुई मगर
एक क़तरा भी भी खून का
इसमें कोई लगा नहीं कभी
दामन मेरा बेदाग ज़रूर है
मगर बात मौके की है ये
मैं हिम्मत ही कर न सका
कभी इसे ज़रा आजमाने की
सुना था ज़मीर भी होता था
पहले शमशीरबाजों का यहाँ
हैरान देखता रहता हूँ अक्सर
शम्शीरबाज़ी इस ज़माने की
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