Sunday, January 9, 2011

फरियादी

फक्र था मुझे जिन शख्शियतों पर
आज वो ज़ज्बात बेमानी हो गए हैं
कभी एक धूप की किरण से थे
आज अँधेरे के सानी हो गए हैं
जिन कन्धों पे सोंपी थी ज़िम्मेदारी
आज वो मेरी परेशानी बन गए हैं
जिनकी ईमान पर पढ़े थे कसीदे
आज वो बस बेईमानी रह गए हैं
सोचा बनेंगे सबब कामयाबी का
उन्हीं के दर फरियादी हो गए हैं

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